घुमक्कड़ बाबू #लेखनी पर्यटन दिवस कहानी प्रतियोगिता -23-Jan-2022
घुमक्कड़ बाबू.. हरिद्वार ऋषिकेश यात्रा (# पर्यटन दिवस)
घुमक्कड़ स्वभाव के रमलेश जिनको सिर्फ कोई बहाना मिल जाए बस घूमने का। हर शनिवार रविवार को जब आॅफिस की छुट्टी होती तो वो परिवार के साथ निकल जाते घूमने।
दिल्ली का तो शायद ही कोई कोना ऐसा रहा होगा जो उनकी नज़र से बचा होगा। अगर परिवार साथ नहीं चलता तो वो अकेले ही निकल जाते थे कहीं भी। चाहे खुशी मनाने या फिर गम मिटाने।
जितनी बड़ी खुशी या जितना बड़ा गम या गुस्सा होता उतनी ही दूरी का उनका सफर होता।ऐसे ही हरिद्वार, ऋषिकेश तो कभी वैष्णोदेवी चले जाते थे।
एक दिन जब उनके घर में मेहमान आऐ थे रमलेश की पत्नी कल्यानी के भाई और उसके दोस्त। रमलेश जी जब अपने साले साहब और उनके दोस्त के साथ खाने बैठे तो अचानक खाना छोड़ उठ गए गुस्से में और अपने कमरे में आ अपना बैग समेट जिसमें दो जोड़ी कपड़े और जरुरत का समान रखा और चले गये घर से बाहर।
बात क्या हुई अचानक...
सब अवाक रह गए जब हँसी मजाक का दौर चल रहा था खाने के साथ साथ और रमलेश जी को गुस्सा आ गया।
शुक्रवार का दिन था कल्यानी उसकी बेटी और बहू सब संतोषी माता का व्रत करती थी तो उस दिन उनके घर हमेशा सादा खाना बिना खट्टा, और प्याज लहसन के बनता था। उस दिन उनके घर में कोई खट्टा नहीं खाता था दही, आचार, चटनी कुछ नहीं।
वैसे ये बात साले जी को पहले ही रमलेश ने बता दी थी। देख लो जनाब खाने में कुछ खट्टा नहीं मिलेगा। दोपहर खाने का समय था तो मना भी कैसे करते। कल्यानी के भाई बोले कोई बात नहीं जीजाजी आप जो खाऐंगे हम भी वही खा लेंगे। पर जब खाना शुरु किया उनका दोस्त बोला इतना फीका खाना हम नहीं खा पा रहे घर में आचार नहीं है क्या।
रमलेश बोले हम पहले ही बताऐ आपको आज के दिन हमारे घर आपको खट्टी चीज खाने को नहीं मिलेगी। फिर भी हर थोड़ी देर पर वो दोस्त कभी नींबू तो कभी दही की माँग कर रहा था।
कल्यानी से रहा नहीं गया मन में सोचा
अतिथि देवौ भवः
और आचार ला उन भाई के दोस्त की थाली में दे दिया। बस रमलेश जी का गुस्सा साँतवे आसमान पर चढ़ गया। जब हम मना किये तो मेरी बात क्यों काटी गई।
कल्यानी उनके स्वभाव को जानती थी फिर भी उन्हें बहुत बुरा लगा जब भाई और उसके दोस्त के सामने वो गुस्से में खाना छोड़ चले गए।
इधर रमलेश हरिद्वार के लिए बस में बैठ गए। वैसे वो कई दिनों से कह रहे थे अपनी पत्नी को चलो हरिद्वार ऋषिकेश चलते हैं। पर उनकी पत्नी हर बार टाल देती उनकी बात अभी बहु को बच्चा हुआ है.. अभी कैसे जाऐंगे.. बच्चा छोटा है तो कभी बेटी की परिक्षाओं के कारण मना कर देती।
तो आज बहाना मिल ही गया रमलेश जी को। गुस्से में घर से निकले तो थे.. पर बस में बैठ जैसे जैसे दिल्ली क्रौस कर उतराखंड की तरफ बस बढ़ रही थी। ठंडी हवा के झोंके उनका गुस्सा शांत कर रहे थे।
हरिद्वार पहुँच गंगा जी में स्नान किया। गंगाजी का ठंडा जल उन्हें अमृत लग रहा था। गंगा नदी में हरकी पौड़ी पर बैठे शिवजी जी बड़ी सी मूर्ति जो गंगाजी के मध्य में स्थापित थी। बहुत ही खूबसूरत लग रही थी ऐसा लग रहा था मानों गंगा जी का सारा जल शिवजी की मूर्ति के ऊपरी हिस्से जहाँ शिवजी के सर से गंगा बह रही थी... वहीं से ये सारा जल नदी में समा रहा है।
वो गंगा में डुबकी लगाने के बाद काफी देर वहीं मंत्रोजाप करते रहे। भगवान शिव के ध्यान में मग्न हो रमलेश जी को काफी शांति मिल रही थी और मन आनंदित हो रहा था।
फिर वहाँ हरिद्वार के आसपास के सारे मंदिर में दर्षण किये। मनसा देवी की चढा़ई कर माता मनसा देवी के दर्षण किये। उन्हें अपनी पत्नी की कमी महसूस हो रही थी। सोचते काश कल्यानी भी साथ होती। उसके बिना तो मैं अधूरा हूँ यही बात उन्हें परेशान कर रही थी। कभी सोचते अपने गुस्से पर काबू रखना चाहिए था, ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था। कभी अपनी पत्नी के बारे में सोचते... दिन भर वो घर परिवार मेहमान ...सब संभालने में लगी रहती है। बहुत अच्छी है मेरी पत्नी आज तक कभी कोई शिकायत नहीं की.. व्रत करके भी वो अपने हाथ से खट्टा खाने को दे दी।
वो अपना आत्मचिंतन कर अपनी पत्नी को याद करते मनसा देवी के पहाड़ से उतर हरिद्वार गंगा घाट पर पहुँच गए। फिर शाम की आरती का वो दृश्य बहुत ही मनमोहक था। घंटो की ध्वनी गंगा मैया के जयकारे और जल में प्रवाहित होते दोने में रखे वो दीप। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस धरती पर स्वर्ग उतर आया हो।
रमलेश को यह भक्तिमय वातावरण मोहित कर रहा था। आरती के बाद और प्रसाद खाने के बाद वहीं ढाबे पर भोजन किया फिर होटल बुक किया तीन दिन के लिए। तीन दिन और तीन रात रमलेश वहीं हरिद्वार में रहे। फिर चौथे दिन ऋषिकेश के लिए निकल गए. वहाँ सारे मंदिर में दर्षण किया. फिर वह नीलकंठ भोले बाबा के मंदिर गए। नीलकंठ की चढा़ई बहुत कठिन थी।
जंगलों से होती उस पहाड़ी की चढ़ाई में उन्हें परेशानी तो बहुत हुई। उस रास्ते में सुविधा नाममात्र भी ना थी। ना कहीं पीने का पानी ना ही चाय की दुकान।
बस भोले बाबा का नाम ले आगे बढ़ रहे थे भक्तजन और उन्हीं के साथ रमलेश जी भी। नीलकंठ की आधी चढा़ई की तब उन्हें एक कुटिया नजर आई वहाँ कुछ साधु बाबा भक्तों को प्रसाद रुप भोजन करा रहे थे।
वो खाना... नहीं अमृत लगा उस समय रमलेश जी को। थोड़ी देर आराम के बाद फिर आगे की चढा़ई शुरु की। जब मंदिर तक पहुँच गए तो रात को वहीं रुक सुबह स्नान के बाद दर्शन किये।भोलेनाथ की पूजा की अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना की। हर पल अपनी संगिनी को याद करते रहे।
वापसी के समय उनका पैर बुरी तरह सूज गया था तो दूसरे रास्ते से गाड़ी कर वापस ऋषिकेश पहुँचते समय जिस गाड़ी में वो बैठे थे वहीं ऋषिकेश... उत्तराखंड के कुछ स्थानीय निवासी भी बैठे थे। बस बातचीत के दौरान वहाँ की जमीन और घर की कीमत का अंदाज़ा लगा उन्होंने मन में ठान लिया कि वो रिटायरमेंट के बाद यहीं ऋषिकेश में ही रहेंगे। दिल्ली के प्रदुषण और भीड़भाड़ से दूर एकांत में इन पहाडियों के बीच उनका भी छोटा सा एक घर होगा।
हरिद्वार पहुँच सबके लिए कुछ ना कुछ खरीदा। एक हफ्ते बाद वो अपने घर इस तरह पहुँचे जैसे रोज शाम को आॅफिस से घर पहुँचते हैं। सब चिंतित थे कि पता नहीं कहाँ गए होंगे कब लौटेंगे... आऐंगे तो बहुत गुस्से में होंगे। पर जब रमलेश जी सारे मंदिर का प्रसाद और सबको बुला कर उपहार दे रहे थे तो लगा ही नहीं कि एक हफ्ते पहले वो गुस्से में घर छोड़कर गए थे। अपनी पूरी यात्रा और भविष्य योजना सुना रहे थे और पूरा परिवार उन्हें स्वस्थ और प्रसन्न देख खुश हो रहा था।
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कविता झा'काव्या कवि'
सर्वाधिकार सुरक्षित
#लेखनी
#लेखनी पर्यटन दिवस प्रतियोगिता
23.01.2022
🤫
31-Jan-2022 03:18 PM
Bahut badhiya
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Seema Priyadarshini sahay
24-Jan-2022 09:40 PM
बहुत खूबसूरत
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Ravi Goyal
23-Jan-2022 08:14 PM
Waah bahut badhiya
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